बचपन की तलाश में निकला हूँ
न हारा हूँ , न भागा हूँ बस कुछ दूर निकला हूँ
ढूंढ़ना है उन आंखों को
जो हमेशा जगमगाती थीं
थामना है उन हाथों को
जिनमे दुनिया सिमट जाती थी
दौड़ना है कुछ ऐसे,
की गिरने पर भी रुकूं नही
हंसना है कुछ ऐसे,
की ज़माने की कोई फिकर नही
सोऊँ तो कुछ ऐसे की,
बीता कल याद न रहे
जागूं तो कुछ ऐसे,
की ज़हन में बस आज रहे
उस आज में न कल की चिंता,
न बीते कल का मलाल रहे
मन में बस एक सपना हो,
न आगे निकलने का, न पीछे रह जाने का ख्याल रहे
जिंदगी से हंस के मिलूँ,
होठों पर वही मुस्कान रहे
हर गुज़रते लम्हे को कुछ दे सकूं
आने वाले, हर पल का इंतज़ार रहे