किसी का पसीना, तो किसी की थकान हूँ मैं
किसी का आराम, तो किसी का विराम हूँ मैं
गुज़रते के लिए भले ही अंजान हूँ मैं
पर हाँ, मेरे अपनों की एक गहरी पहचान हूँ मैं
कभी हर कमरा खिलखिलाया है मेरा
कभी हर कोना जगमगाया भी है
कभी अंधेरे ने जकडा है मुझको
सन्नाटे से मन छटपटाया भी है
कितनो को आते देखा है मैंने
बोहोतों के जाने पर रोया भी हूँ
फिर भी सबको संभाला है मैंने
सबकी खुशी में हंसा भी हूँ
पर बेहिसाब तेज दौड़ती इस दुनिया से
कदम मिलाने की हिम्मत नही है
कहेने को सबका ठिकाना हूँ लेकिन
किसी को शायद मेरी ज़रूरत नही है
सिमटते रिश्तों ने समेटा है मुझको
टूटे हुओं से बटा हूँ मैं
हाँ मगर अब भी वहीं खड़ा
अपने मे एक छोटा संसार हूँ मैं
कहेने को चार दिवारी से घिरा,
ईंटो का पुतला एक माकन हूँ मैं
पर सदिओं को अपने अंदर समेटे
न जाने कितनो का
भूत, भविष्य, वर्त्तमान हूँ मैं