काश की सब अरमान हमने, यूँ हंसी में ना उडाये होते
काश की एक बार, अपने अंदर भी झांक के देखा होता
काश कुछ नासम्झी से पेश आए होते
काश दिल को इतना समझाया ना होता
काश की ये लम्हे कुछ धीरे से चले होते
गुज़रते वक्त को किसी ने थाम लिया होता
काश कुछ कदम हम भी बढे होते
पलट कर एक बार, तुमने भी देखा होता