एक और कदम अनंत की ओर
एक और नज़र ज़मीन की ओर
एक और तरंग इस मन की ओर
एक और झलक असमान की ओर
एक और किरण लहरों की ओर
एक और लहर कदमों की ओर
एक और मांझी, कश्ती की ओर
एक और राही , मंजिल की ओर
कभी डरे हुए देखा, साहिल की ओर
कभी उम्मीद से देखा शितिज की ओर
कभी देखा है बह कर
कभी सोचा है रुक कर
क्यूँ चलना है जीवन, क्यूँ बहना नियम है
क्यूँ बिछड़ने का दुख है , खो देने का गम है
क्यूँ भीड़ में तनहा हूँ , क्यूँ आँखे भी नम है
क्यूँ राहें हैं ज्यादा , क्यूँ साथी ही कम है
हर कोई ढूँढता है इस समंदर का छोर
हर दिल में गूंजता है , इस सन्नाटे का शोर
बस वक़्त से थमीं है , इन सांसो की डोर
हर सांस चली है एक अंत की ओर