क्या खोया क्या पाया मैने
सबको बस तन्हा सा पाया मैने
क्या जीता क्या हारा मैने
ना राह रुकी ना थमा सफ़र
खुद को बस अकेला सा पाया मैने
क्या सोचा क्या चाहा मैने
ना यादें रहीं ना समेटीं खुशियाँ हीं
सपनो में उलझा, खुद को बस सहमा सा पाया मैने
क्या संजोया क्या संभाला मैंने
भिछ्ढ़ते क़दमों को चुपचाप गुज़रते देखा,
सफ़र को बेमानी सा पाया मैंने
ना मंज़िल पर सुकून, ना चलने का दम है
ना बढने का जुनून, ना ठहरने का मन है
जीती तो बस शायद दूरियाँ मैने
भीड़ मे कहीं खो दिया अपना साया भी मैने