जब जब देखा आईने में मैंने, एक अनजान सा चेहरा दिखा है
जब जब देखीं हाथ की रेखाएँ, बदलती सी लकीरें दिखीं हैं
गौर से देखा दुनिया को जब भी, पहेले सा कुछ भी नहीं है
नया है आसमान, नया सवेरा है, नयी सी किरने दिखीं हैं
बदलाव ने तोड़े हैं बोहोत से सपने
पर साथ ही बोहोत सी उमीदें जगीं हैं
सोचा है कईं बार लौट जाने की मन में
पर जैसे सफ़र से अब साँसे बंधीं हैं
कईं मोड़ बेमन से लेकर चलें हैं
पर दिल में कहीं यह आस छुपी हैं
फिर कहीं से वो राह मिलेगी
जिस पर हमेशा से आखें टिकीं हैं
शायद हर उस मोड़ का मकसद रहा हो
कोई भी कदम बेमानी नहीं है
सपनों के दम पर ही कायम है दुनिया
राहों में ही कहीं शायद मंजिलें छुपी हैं