11 Jan 2012
कागज़ की इन लकीरों में ही कहीं खुद को ढूँढता हूँ इन्ही में कभी ख़ुशी , इन्ही में कभी सुकून ढूँढता हूँ खुदी के सवालों के शोर में, थोडा एकांत ढूँढता हूँ खुदी ने बांधीं जो बेड़ियाँ हैं, उन्ही का छोर ढूँढता हूँ जिन्हें छोड़ आगे बड़ा , अब उन्हें ही ढूँढता हूँ राहों में अपने घर को , गैरों में अपनों को ढूँढता हूँ ना जाने क्यूँ औरों की आँखों में अपने वजूद को ढूँढता हूँ खुद में किसी और को , आईने में ...